उत्तराखंड की गोद में बसा एक छोटा सा गांव बजीना जो कि उस समय उत्तर प्रदेश के अल्मोड़ा जिले का हिस्सा था। छोटे से गांव से 12 वीं की पढ़ाई कर लेने के बाद एक दिन पिता को बिना बताए नवीन दिल्ली आ गए जहां उनके भाई नौकरी किया करते थे। यह वर्ष 2005 की बात थी। पहाड़ और गाँव में जिसका पूरा बचपन बीता हो, शहर की आपाधापी नवीन को समझ नहीं आ रही थी लेकिन उस समय उसे धुन सवार थी कि परिवार को दयनीय आर्थिक स्थिति से उबारने के लिए मेहनत करनी है। वर्ष 2007 में उनकी माताजी कर्क रोग से पीड़ित हो गई और अनेक चिकित्सा संस्थाओं में इलाज करने के बाद भी वे ठीक नहीं हो पाई तब उन्हें गांव में ले जाया गया जहां कुछ महीनों के बाद उनका शरीर पूरा हो गया और वे परमात्मा के परम धाम को चली गई। उस समय नवीन दिल्ली में नौकरी कर रहे थे, जैसे ही उन्हें सूचना मिली उन्होंने घर जाने का निश्चय किया लेकिन विधाता को शायद नवीन को और अधिक परिपक्व करना था, उसे कुछ और ही मंजूर था। ये घटना जब भी वे स्मरण करते हैं तो एक अलग दार्शनिक मनोभाव और गहराई, रहस्य उनके चेहरे से झलक जाता है। नौकरी और पढ़ाई साथ साथ करते हुए 7 साल बीत गए। इस सात सालों में नवीन ने कार्य के अतिरिक्त कुछ सोचा ही नहीं।टीवी के माध्यम से एक बार उन्होंने परम पूज्य स्वामी रामदेव जी को सुना जिनके क्रांतिकारी और आध्यात्मिक ऊर्जापूर्ण व्यक्तव्यों ने भीतर तक झझकोर दिया। पहली बार किसी ने युवा नवीन के अंतर्मन को छुआ था।

युवा नवीन समय निकालकर आस्था चैंनल के माध्यम से प्रतिदिन स्वामी रामदेव जी के विचारों को सुनने लग गए और भीतर ही भीतर सेवा का भाव हिलोरें लेने लग गया। एक दिन निर्णय कर लिया की मुझे नौकरी छोड़कर समय और स्वयं की मांग के अनुसार अपने जीवन को देश सेवा में लगाना है। पहले तो युवा नवीन ने सोचा कि दो वर्ष जब तक देश में नई ईमानदार सरकार चुन नहीं लेते तब तक एक सेवाव्रती के रूप में पतंजलि योगपीठ के माध्यम से सेवा करेंगे, लेकिन नियति तय कर चुकी थी आगे का जीवन पथ, श्रेय का पथ। पिता इसी आस में रहे कि 2014 के बाद उनका बेटा घर लौट आएगा लेकिन युवा नवीन का चित्त पूरी तरह अध्यात्म के रंग में रंगने लगा। पतजंलि योगपीठ में वैदिक गुरुकुलम में शास्त्रोक्त रीति से साक्षात गुरुओं के सानिध्य में प्रारंभिक व्याकरण, 4 दर्शन, 11 उपनिषदों एवं वेद स्वाध्याय किया। गुरुओं द्वारा प्रदत्त ज्ञान से स्वयं के स्वाध्याय से गीता, रामायण, महाभारत, वेदांत, चाणक्य नीति, विदुर नीति, वैराग्य शतकम्, आयुर्वेद ग्रंथो का अध्ययन किया।संस्कृत का पूर्व अभ्यास न होने के बाद भी उनका स्पष्ट उच्चारण एवं संस्कृत संभाषण कला गुरुजनों सहित सभी विद्वतजनों को चकित करती है। पूज्य स्वामी रामदेव जी ने स्वयं कई प्रतिष्ठित मंचो से उनकी इस विधा की प्रसंशा की है। 2012 से लेकर 2014 तक परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज जी के साथ अनेक सेवाकार्यों में लगते हुए वैदिक पढ़ाई भी ब्रह्मचारी नवीन ने की। वर्ष 2018 फरवरी माह में परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज ने प्रथम बार अपने ब्रह्मचारियों को सन्यास देने का निर्णय लिया। ब्रह्मचारियों के लिए भी इस विषय में निर्णय लेना एक बहुत बड़ी बात थी। उस समय स्वामी रामदेव जी ने आचार्य नवीन को कहा कि मैं चाहता हूँ तुम सन्यास लो, मैं तुम्हें युवा सन्यासी के रूप में देखना चाहता हूँ। आचार्य नवीन ने स्वामी जी महाराज से 10 दिन का समय मांगा और कहा कि मैं 5 दिन के लिए बाहर जाना चाहता हूँ। गुरु को एक बहुत अस्पष्ट आश्वासन दे चुके थे आचार्य नवीन लेकिन लहिं भीतर उनके मन में वो स्पष्टता या उत्साह नहीं था। उत्साह इसलिये नहीं था क्योंकि उनको कुछ भी स्पष्टता से भीतर से सन्यास की आवाज नहीं आ रही थी। 5 दिनों के एकांतवास और प्रकृति के सानिध्य में आचार्य नवीन ने अपने को छोड़ दिया और एक निश्चय किया कि वो इन पांच दिनों में किसी भी प्रकार से अपनी इच्छा से निर्णय नहीं लेंगे। कोई सोच विचार नहीं करेंगे। यदि कोई स्वतः स्फूर्त सन्यास का विचार उत्पन्न होता है तो ही वे सन्यास के लिए महाराज जी हाँ कहेंगे नहीं तो प्रतीक्षा करेंगे आगे के लिए। यह सबकुछ आचार्य नवीन के मन मे स्पष्ट हो चुका था।5 दिनों के बाद उनके जीवन की सारी दिशा, सारे संशय, सारी दुविधाएं, सब प्रकार की अनिश्चिन्तता स्वतः हट गई और उनका मन, इनका हृदय और बुद्धि सबकुछ सन्यास से ओतप्रोत होने लग गई। उनके सामने उनके जीवन के एक एक कटु सत्य पानी मे बह से गये। वे योगपीठ लौटे और निर्भ्रांत होकर, संशयरहित होकर सन्यास उत्सव में भाग लेने लग गए। 25 मार्च 20818, प्रातःकाल यज्ञ के साथ उनके लम्बे केश उतारे गए और हरकी पैड़ी में गंगा मैया की दिव्य उपस्थिति में उन्हें परम पूज्य महाराज श्री ने सन्यास दीक्षा से दीक्षित किया। उनका नाम आचार्य नवीन से स्वामी विदेह देव कर दिया गया। ओम

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